प्रेस विज्ञप्ति – वृद्ध विमर्श पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों रखे अपने विचार

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प्रेस विज्ञप्ति – वृद्ध विमर्श पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों रखे अपने विचार

प्रेस विज्ञप्ति
जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान होता है
वहां लक्ष्मी का वास होता है
वृद्ध विमर्श पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों रखे अपने विचार
वरिष्ठ महिला साहित्यकार अलका सरावगी, मनीषा कुलश्रेष्ठ और प्रेम भारद्वाज ज्ञानभिक्षु सहित अनेक विद्वानों ने की भागीदारी

रायपुर। भारतीय संस्कृति में जिनको सिरमौर समझा जाता था, बदलते समय के साथ आज वह संगोष्ठी का विषय बन गया है। इस विषय पर चर्चा करना बेहद जरूरी है क्योंकि जिस घर में बुजुर्गों का वास होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। बुजुर्ग हमारी पूंजी है और यही हमारी संस्कृति भी है। युवा पीढ़ी इस बात को समझे और बुजुर्गों का सम्मान करे क्योंकि एक दिन उन्हें भी बुजुर्ग होना है।
यह बातें मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर के हिन्दी विभाग द्वारा ’वृद्ध विमर्शः कल, आज और कल’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में विषय विशेषज्ञों और विद्वानों ने कहीं। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ला ने कहा कि जिस समय उम्र बढ़ती है और उनके पास अथाह ज्ञान रहता है उस समय हमारा समाज उन्हें अकेला छोड़ देता है। प्रो. शुक्ला ने वृद्ध विमर्श पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को वर्तमान समय में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि युवा घर बैठे अपने बुजुर्गों का मार्गदर्शन पाकर आगे बढ़ें तो वे हर क्षेत्र में प्रगति करेंगे।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित देश की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार अलका सरावगी ने कहा कि जिन्हें जीवन में सहारे की जरूरत होती है उन्हें हम अकेला छोड़ देते हैं। आज बच्चे पढ़-लिखकर किसी और शहर चले जाते हैं और माता-पिता अकेले हो जाते हैं। अंत में वे भी अपना सब कुछ छोड़कर वृद्धा आश्रम में रहने को मजबूर होते हैं। अलका सरावगी ने हिन्दी साहित्य में वृद्ध विमर्श के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये और कहा कि युवाओं की जिम्मेदारी है कि वे वृद्धों की देखभाल करें और उनका सम्मान करें।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित वरिष्ठ महिला साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि मदर्स डे और फादर्स डे पर सोशल मीडिया में फोटो पोस्ट कर दिया जाता है लेकिन पार्टी से लौटकर कभी उनसे यह नहीं पूछते कि आपका दिन कैसे गुजरा, आपने खाना खाया की नहीं। उन्होंने कहा कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम सब मिलकर वृद्धों का सम्मान करें।
राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार, समालोचक और गजलकार डॉ. प्रेम भारद्वाज ज्ञानभिक्षु ने विदेशों के अपने अनुभव सुनाते हुए कहा कि जो विदेशों में रहते हैं वे अपने बूढ़े माता-पिता को सिर्फ घर का काम करने या बच्चों को सम्भालने के लिए बुलाते हैं क्योंकि वहां काम करने के लिए लोग नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि चर्चा इस बात पर करनी चाहिए कि वृद्धाश्रम क्यों खुल रहे हैं। मैट्स विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने कहा कि सिर्फ घर, परिवार और समाज ही नहीं देश की प्रगति के लिए भी बुजुर्गों के आशीर्वाद की जरूरत है। हमारा देश सही मायने में तभी विकसित बनेगा जब हम बुजुर्गों का सम्मान करेंगे। इस अवसर पर मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया ने हिन्दी विभाग के प्रयासों की सराहना की। राष्ट्रीय संगोष्ठी के सभी अतिथियों को उन्होंने स्मृति चिन्ह, श्रीफल एवं पुस्तक भेंटकर सम्मानित किया। समारोह के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार, भाषाविद् और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा. चितरंजन कर ने कहा कि जिस समाज, प्रांत या देश में वृद्धों का सम्मान होता है, वही समाज समृद्ध होता है और उसी समाज के बच्चे भी अपनी पहचान बनाते हैं। मैट्स विश्वविद्यालय ने वृद्ध विमर्श पर संगोष्ठी का आयोजन कर आज के युवाओं को सत्प्रेरणा दी है। इसके पूर्व स्वागत भाषण देते हुए मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने कहा कि हमारा उद्देश्य समाज में वृद्धजनों का सम्मान करने और युवा पीढ़ी को जागरुक करने के लिए प्रेरित करना है। हमें उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास वृद्धजनों की समस्याओं के समाधान की दिशा में सार्थक कदम होगा।
इसके पूर्व इस संगोष्ठी का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के प्राध्यापकगण डॉ. कमलेश गोगिया, डॉ. रमणी चंद्राकर, डॉ. सुनीता तिवारी, डॉ. सुपर्णा श्रीवास्तव, प्रियंका गोस्वामी, सीता पाटले सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे। इस अवसर पर शोध सारांश स्मारिका का भी विमोचन किया गया जिसमें 66 शोधार्थियों के शोध पत्रों के सारांश समाहित हैं। इस संगोष्ठी के लिए देश के विभिन्न राज्यों के सौ से भी ज्यादा शोधार्थियों, प्राध्यापकों व विद्यार्थियों ने पंजीयन कराया है।

 

 

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